गुरुचरित्र अध्याय 52 कोई भी व्यक्ति जो आध्यात्मिक मार्गदर्शन और प्रेरणा की खोज में है, के लिए एक अनिवार्य पठन है। यह एक ऐसा अध्याय है जिसे विभिन्न स्तरों पर पढ़ा और समझा जा सकता है, जो दोनों अनुभवी साधकों और नौसिखियों को समान रूप से मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
यह अध्याय हृदयस्पर्शी कहानियों और अंतर्दृष्टिपूर्ण शिक्षाओं से भरा है जो गुरु के दिव्य स्वभाव को उजागर करते हैं। यह अध्याय आध्यात्मिक पथ में विश्वास, समर्पण और भक्ति के महत्व को भी उजागर करता है।
श्रीगणेशाय नमः I श्रीसरस्वत्यै नमः I
श्रीगुरुदेवदत्तात्रेयचरणारविन्दाभ्यां नमः I
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः I
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः I I ॐ I I
श्रोते व्हावे सावधान I श्रीगुरुचरित्राध्याय एकावन्न I
ऐकोनि नामधारकाचे मन I ब्रह्मानंदी निमग्न पै I I १ I I
सेवूनि गुरूचरित्रामृत I नामधारक तटस्थ होत I
अंगी धर्म-पुलकांकित I रोमांचही ऊठती I I २ I I
कंठ झाला सद्गदित I गात्रे झाली संकपित I
विवर्ण भासे लोकांत I नेत्री वहाती प्रेमधारा I I ३ I I
समाधिसुखे न बोले I देह अणुमात्र न हाले I
सात्विक अष्टभाव उदेले I नामधारक-शिष्याचे I I ४ I I
देखोनि सिद्ध सुखावती I समाधि लागली यासी म्हणती I
सावध करावा मागुती I लोकोपकाराकारणे I I ५ I I
म्हणोनि हस्ते कुरवाळिती I प्रेमभावे आलिंगिती I
देहावरी ये ये म्हणती I ऐक बाळा शिष्योत्तमा I I ६ I I
तू तरलासि भवसागरी I रहासी ऐसा समाधिस्थ जरी I
ज्ञान राहील तुझ्या उदरी I लोक तरती कैसे मग I I ७ I I
याकारणे अंतःकरणी I धृढता असावी श्रीगुरुचरणी I
बाह्य देहाची रहाटणी I शास्त्राधारे करावी I I ८ I I
तुवां विचारिले म्हणोनि I आम्हां आठवली अमृताची वाणी I
तापत्रयाते करी हानि I ऐशी अनुपम्या प्रगटली I I ९ I I
तुजमुळे आम्हां आठवले I तुवां आम्हां बरवे केले I
त्वांही एकाग्रत्वे ऐकिले I आता हेंच विस्तारी I I १० I I
नामधारका ऐशियापरी I सिद्ध सांगती परोपरी I
मग तो नेत्रोन्मीलन करी I कर जोडोनि उभा ठाके I I ११ I I
म्हणे कृपेचे तारू I तूंचि या विश्वास आधारू I
भवसागर पैलपारु I तूंचि करिसी श्रीगुरुराया I I १२ I I
ऐसे नामधारक विनवीत I सिद्धाचे चरणी लागत I
म्हणे श्रीगुरूचरित्रामृत I अवतरणिका मज सांगा I I १३ I I
या श्रीगुरूचरित्रामृती I अमृताहूनि परामामृती I
भक्तजनांची मनोवृत्ति I बुडी देवोनि स्थिरावली I I १४ I I
मी अतृप्त आहे अजूनि I हेचि कथा पुनः सुचवोनि I
अक्षयामृत पाजूनि I आनंदसागरी मज ठेवा I I १५ I I
बहु औषधींचे सार काढोन I त्रैलोक्यचिंतामणी रसायण I
संग्रह करिती विचक्षणे I तैसे सार मज सांगा I I १६ I I
ऐकोनि शिष्याची प्रार्थना I आनंद सिद्धाचिया मना I
म्हणती बाळका तुझी वासना I अखंड राहो श्रीगुरूचरित्री I I १७ I I
श्रीगुरूचरित्राची ऐका I सांगेन आतां अवतरणिका I
प्रथमपासूनि सारांश निका I एकवन्नाध्यायपर्यंत I I १८ I I
प्रथमाध्यायी मंगलाचरण I मुख्य देवतांचे असे स्मरण I
श्रीगुरूमूर्तीचे दर्शन I भक्ताप्रती जाहले I I १९ I I
द्वितीयाध्यायी ब्रह्मोत्पत्ती I चारी युगांचे भाव कथिता I
श्रीगुरुसेवा दीपकाप्रती I घडली ऐसे कथियेले I I २० I I
नामधारका अमरजासंगमा I श्रीगुरू नेती आपुले धामा I
अंबरीष दुर्वास यांचा महिमा I तृतीयाध्यायी कथियेला I I २१ I I
चतुर्थाध्यायी अनसूयेप्रती I छळावया त्रैमूर्ति येती I
परी तियेचे पुत्र होती I स्तनपान करिती आंनदे I I २२ I I
पंचमी श्रीदत्तात्रेय धरी I स्वये अवतार पीठापुरी I
‘ श्रीपाद-श्रीवल्लभ ‘ नामधारी I तीर्थयात्रेसी निघाले I I २३ I I
सहाव्यांत लिंग घेऊनि I रावण जातां गोकर्णी I
विघ्नेश्वरे विघ्न करूनि I स्थापना केली त्याची I I २४ I I
गोकर्णमहिमा असंख्यात I रायाप्रती गौतम सांगत I
चांडाळी उद्धरिली अकस्मात I सातव्या अध्यायी वर्णिती I I २५ I I
माता पुत्र जीव देत होतीं I तयांप्रती गुरु कथा सांगती I
शनिप्रदोष व्रत देती I ज्ञानी करिती अष्टमीं I I २६ I I
नवमाध्यायीं रजकाप्रती I कृपाळू गुरु राज्य देती I
दर्शन देऊं म्हणती पुढती I गुप्त झाले मग तेथें I I २७ I I
तस्करीं मारिला भक्त ब्राह्मण I तस्करां वधिती श्रीगुरु येऊन I
ब्राह्मणाला प्राणदान I देती दशमाध्यायांत I I २८ I I
” माधव ” ब्राह्मण करंजपुरीं I ” अंबा ” नामें त्याची नारी I
‘नरसिंह-सरस्वती ‘ तिचे उदरीं I एकादशीं अवतरले I I २९ I I
द्वादशाध्यायी मातेप्रति I ज्ञान कथूनि पुत्र देती I
काशीक्षेत्रीं सन्यास घेती I यात्रा करिती उत्तरेची I I ३० I I
माता-पित्यांतें करंजपुरी I भेटोनि येती गोदातीरीं I
कुक्षिव्यथेच्या विप्रावरी I कृपा करिती त्रयोदशीं I I ३१ I I
क्रूर यवनाचें करूनि शासन I सायंदेवास वरदान I
देती श्रीगुरु कृपा करून I चौदाविया अध्यायीं I I ३२ I I
पंचदशीं श्रीगुरूमूर्ति I तीर्थे सांगती शिष्यांप्रती I
यात्रे दवडूनि गुप्त होती I वैजनाथी श्रीगुरू I I ३३ I I
षोडशीं ब्राह्मणा गुरुभक्ति I कथूनि दिधली ज्ञानशक्ति I
श्रीगुरू आले भिल्लवडीप्रती I भुवनेश्वरी-संनिध I I ३४ I I
भुवनेश्वरीला मूर्ख ब्राह्मण I जिव्हा छेदोनि करी अर्पण I
त्यास श्रीगुरुंनीं विद्या देऊन I धन्य केला सप्तदशीं I I ३५ I I
घेवडा उपटूनि दरिद्रियाचा I कुंभ दिधला हेमाचा I
वर्णिला प्रताप श्रीगुरूचा I अष्टादशाध्यायांत I I ३६ I I
औदुम्बराचें करूनि वर्णन I योगिनींस देऊनि वरदान I
गाणगापुरास आपण I एकुणविंशीं श्रीगुरू गेले I I ३७ I I
स्त्रियेचा समंध दवडून I पुत्र दिधले तिजला दोन I
एक मरतां कथिती ज्ञान I सिद्धरुपें विसाव्यांत I I ३८ I I
तेचि कथा एकविंशीं I प्रेत आणिलें औदुम्बरापाशीं I
श्रीगुरू येऊनि तेथे निशीं I पुत्र उठविती कृपाळू I I ३९ I I
भिक्षा दरिद्र्या घरी घेती I त्याची वंध्या महिषी होती I
तीस करून दुग्धवती I बेविसाव्यांत वर दिधला I I ४० I I
तेविसाव्यांत श्रीगुरूस I राजा नेई गाणगापुरास I
तेथे उद्धरती राक्षस I त्रिविक्रम करी गुरुनिंदा I I ४१ I I
भेटो जाती त्रिविक्रमा I दाविती विश्वरूपमहिमा I
विप्र लागे गुरुपादपद्मा I चोविसाव्यांत वर देती I I ४२ I I
म्लेन्च्छापुढें वेद म्हणती I विप्र ते त्रिविक्रमा छळती I
त्याला घेऊनि सांगातीं I गुरूपाशी आला पंचविशीं I I ४३ I I
सव्विसाव्यांत तया ब्राह्मणा I श्रीगुरू सांगती वेदरचना I
त्यागा म्हणती वादकल्पना I परी ते उन्मत्त नायकती I I ४४ I I
सत्ताविशीं आणूनि पतिता I विप्रासीं वेदवाद करितां I
कुंठित करोनि शापग्रस्ता I ब्रह्मराक्षस त्यां केलें I I ४५ I I
अष्टाविंशीं तया पतिता I धर्माधर्म सांगोनि कथा I
पुनरपि देऊनि पतितावस्था I गृहाप्रती दवडिला I I ४६ I I
एकोनत्रिंशीं भस्मप्रभाव I त्रिविक्रमा कथिती गुरुराव I
राक्षसा उद्धरी वामदेव I हा इतिहास तयांतचि I I ४७ I I
त्रिंशाध्यायीं पति मरतां I तयाची स्त्री करी बहु आकांता I
तीस श्रीगुरू नाना कथा I कथूनि शांतवूं पहाती I I ४८ I I
एकतिसाव्यांत तेचि कथा I पतिव्रतेचे धर्म सांगतां I
सद्गमनप्रकार बोधिता I तें स्त्रियेतें जग्दगुरू I I ४९ I I
सहगमनीं निघतां सती I श्रीगुरूस झाली नमस्कारिती I
आशीर्वाद देवोनि तिचा पति I बत्तिसाव्यांत उठविला I I ५० I I
तेत्तिसाव्यांत रुद्राक्षधारण I कथा कुक्कुट-मर्कट दोघेजण I
वैश्य-वेश्येचें कथन I करिती रायातें पराशर I I ५१ I I
रुद्राध्यायमहिमा वर्णन I चौतिसाव्यांत निरुपण I
राजपुत्र केला संजीवन I नारद भेटले रायातें I I ५२ I I
पंचत्रिन्शत्प्रसंगांत I कचदेवयानी कथा वर्तत I
आणिक सोमवारव्रत I सीमंतिनीच्या प्रसंगें I I ५३ I I
छत्तिसीं ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मणा I स्त्रियेनें नेलें परान्नभोजना I
कंटाळूनि धरिती श्रीगुरूचरणा I त्याला कर्ममार्ग सांगती I I ५४ I I
सप्तत्रिंशीं नाना धर्म I विप्रा सांगोनि ब्रह्मकर्म I
प्रसन्न होऊनि वर उत्तम I देती श्रीगुरु तयातें I I ५५ I I
अष्टत्रिंशीं भास्कर ब्राह्मण I तिघांपुरतें शिजवी अन्न I
जेविले बहु ब्राह्मण I आणि गांवचे शूद्रादि I I ५६ I I
सोमनाथाची गंगा युवती I साठ वर्षांची वंध्या होती I
तीस दिधली पुत्रसंतति I एकुणचाळिसावे अध्यायीं I I ५७ I I
नरहरीकरवीं शुष्ककाष्ठा I अर्चवूनि दवडिलें त्याच्या कुष्ठा I
शबरकथा शिष्य-वरिष्ठां I चाळिसाव्यांत सांगती I I ५८ I I
एकेचाळिशीं सायंदेवा I हस्ते घेती श्रीगुरू सेवा I
ईश्वर पार्वतीसंवाद बरवा I काशीयात्रा निरुपण I I ५९ I I
पुत्रकलत्रेसीं सायंदेव I येऊनि करिती श्रीगुरूस्तव I
त्याला कथिती यात्राभाव I वरही देती एकेचाळिसीं I I ६० I I
बेचाळिसीं अनंतव्रत I धर्मराया कृष्ण सांगत I
तेचि कथा सायंदेवाप्रत I सांगोनि व्रत करविती I I ६१ I I
त्रेचाळिसीं तंतुकार भक्तासी I श्रीपर्वत दावूनि क्षणेंसीं I
शिवरात्रि-पुण्यकथा त्यासी I विमर्षण राजाची कथियेली I I ६२ I I
चव्वेचाळिसीं कुष्ठी ब्राह्मण I आला तुळजापुराहून I
त्याला करवूनि संगमी स्नान I कुष्ठ नासूनि ज्ञान देती I I ६३ I I
कल्लेश्वर हिप्परगे ग्रामास I श्रीगुरू भेटती नरहरी कवीस I
आपुला शिष्य करिती त्यास I पंचेचाळिसावे अध्यायी I I ६४ I I
शेचाळिसीं दिवाळी सण I गुरूसी आमंत्रिती सात जण I
तितुकी रूपे धरुनि आपण I गेले, मठिंही राहिले I I ६५ I I
सत्तेचाळिसीं शूद्रशेतीं I त्याचा जोंधळा कापूनि टाकिती I
शतगुणे पिकवूनि पुढती I आनंदविलें तयातें I I ६६ I I
अठ्ठेचाळिसीं श्रीगुरूमूर्ति I अमरजासंगममाहात्म्य कथिती I
स्नान करवूनि दवडिती I कुष्ठ दैवार्जिती रत्नाबाईचें I I ६७ I I
ईश्वरपार्वती संवाद शुद्ध I मंत्रराज गुरुगीता प्रसिद्ध I
नामधारका सांगे सिद्ध I एकूणपन्नासावे अध्यायीं I I ६८ I I
म्लेंच्छाचा स्फोटक दवडिती I भक्तीस्तव त्याचे नगरा जाती I
पुढे श्रीपर्वतीं भेटों म्हणती I पन्नासावे अध्यायीं I I ६९ I I
एकावन्नांत गुरुमूर्ति I देखोनियां क्षितीं पापप्रवृत्त्ति I
उपद्रवितील नानायाती I म्हणोनि गुप्तरूपें रहावे I I ७० I I
ऐसा करूनि निर्धार I शिष्यांसी सांगती गुरुवर I
आजि आम्ही जाउं पर्वतावर I मल्लिकार्जुनयात्रेसी I I ७१ I I
ऐसें ऐकूनि भक्तजन I मनीं होती अति उद्विग्न I
शोक करिती आक्रंदोन I श्रीगुरूचरणीं लोळती I I ७२ I I
इतुकें पाहूनि गुरुमूर्ति I वरदहस्तें तया कुरवाळिती I
मद्भजनीं धरा आसक्ति I मठधामी राहोनियां I I ७३ I I
ऐसें बोधूनि शिष्यांसी I गुरु गेले कर्दळीवनासी I
नाविकमुखें सांगूनि गोष्टीसी I निजानंदीं निमग्न होती I I ७४ I I
ऐसें अपार श्रीगुरूचरित्र I अनंत कथा परम पवित्र I
त्यांतील एकावन्न अध्याय मात्र I प्रस्तुत कथिले तुजलागीं I I ७५ I I
सिद्ध म्हणे नामधारका I तुज कथिली अवतरणिका I
श्रीगुरू गेले वाटती लोकां I परी गुरु गुप्त असती गाणगापुरीं I I ७६ I I
कलियुगीं अधर्म वृद्धि पावले I म्हणोनि श्रीगुरू गुप्त झाले I
भक्तजनांला जैसे पहिले I तैसेच भेटती अद्दापि I I ७७ I I
हे अवतरणिका सिद्ध माला I श्रीगुरू भेटती जपे त्याला I
जैसा भावार्थ असे आपुला I तैसी कार्ये संपादिती I I ७८ I I
नामधारका तूं शिष्य भला I अवतरणिकेचा प्रश्न केला I
म्हणोनि इतिहाससारांशाला I पुनः वदलों सत्शिष्या I I ७९ I I
पूर्वी ऐकिलें असेल कानीं I त्यांतें तात्काळ येईल ध्यानीं I
इतरां इच्छा होईल मनीं I श्रीगुरूचरित्रश्रवणाची I I ८० I I
ऐसी अवतरणिका जाण I तुज कथिली कथांची खूण I
इचें सतत करितां स्मरण I कथा अनुक्रमें स्मरतसे I I ८१ I I
ऐसें वदे सिद्धमुनि I नामधारक लागे चरणीं I
विनवीतसे कर जोडोनि I तुझे वचनें सर्वसिद्धि I I ८२ I I
आता असे विनवणी I श्रीगुरू-सप्ताहपारायणी I
किती वाचावे प्रतिदिनीं I हें मज सांगा श्रीगुरुराया I I ८३ I I
सिद्ध म्हणती नामधारका I तुवां प्रश्न केला निका I
परोपकार होईल लोकां I तुझ्या प्रश्नेंकरोनियां I I ८४ I I
अन्तःकरण असतां पवित्र I सदाकाळ वाचावें गुरुचरित्र I
सौख्य होय इहपरत्र I दुसरा प्रकार सांगेन I I ८५ I I
सप्ताह वाचावयाची पद्धती I तुज सांगों यथास्थिती I
शुचिर्भूत होवोनि शास्त्ररीतीं I सप्ताह करितां बहु पुण्य I I ८६ I I
दिनशुद्धि बरवी पाहून I आवश्यक स्नानसंध्या करून I
पुस्तक वाचावयाचें स्थान I रंगवल्लादि शोभा करावी I I ८७ I I
देशकालादि संकल्प करून I पुस्तकरुपी श्रीगुरुचें पूजन I
यथोपचारेंकरून I ब्राह्मणासही पूजावें I I ८८ I I
प्रथम दिवसापासोन I बसावया असावें एक स्थान I
अततत्वार्थ भाषणी धरावे मौन I कामादि नियम राखावे I I ८९ I I
दीप असावे शोभायमान I देव-ब्राह्मणा-वडिलां वंदून I
पूर्वोत्तर मुख करून I वाचनीं आरंभ करावा I I ९० I I
सप्त संख्या अध्याय प्रथम दिनीं I अष्टादश द्वितीय दिनीं I
अष्टाविंशति तृतीय दिनीं I चतुर्थ दिवशीं चौतीस पैं I I ९१ I I
सदतीसपर्यंत पांचवे दिनीं I त्रेचाळीसवरी सहावे दिनीं I
सप्तमीं एकावन्न वाचोनि I अवतरणिका वाचावी I I ९२ I I
नित्य पाठ होतां पूर्ण I करावें उत्तरांग-पूजन I
श्रीगुरुतें नमस्कारून I उपहार कांहीं करावा I I ९३ I I
याप्रकारें करावें सप्त दिन I रात्रीं करावें भूमिशयन I
सारांश शास्त्राधारेंकरून I शुचिर्भूत असावें I I ९४ I I
एवं होतां सप्त दिन I ब्राह्मणसुवासिनी-भोजन I
यथाशक्त्या दक्षिणा देऊन I सर्व संतुष्ट करावे I I ९५ I I
ऐसें सप्ताह-अनुष्ठान I करीतां होय श्रीगुरूदर्शन I
भूतप्रेतादि-बाधा निरसन I होवोनि, सौख्य होतसे I I ९६ I I
ऐसें सिद्धाचें वचन ऐकोनि I नामधारक लागे चरणीं I
म्हणे बाळाची आळी पुरवोनि I कृतकृत्य केलें गुरुराया I I ९७ I I
श्रोते म्हणती वंदूनि पायीं I श्रीगुरू केली बहु नवलाई I
बाळका अमृत पाजी आई I तैसें आम्हां पाजिलें I I ९८ I I
प्रति अध्याय एक ओंवी I ओंविली रत्नमाळा बरवी I
मनाचे कंठीं घालितां, पदवी I सर्वार्थाची पाववीत I I ९९ I I
सिद्धाचें वचन रत्नखाणी I त्यांतूनि नामधारक रत्नें आणी I
एकावन्न भरोनि रांजणीं I भक्त-याचकां तोषविलें I I १०० I I
किंवा सिद्ध हा कल्पतरू I नामाधारकें पसरिला करू I
यांइच्छा करोनि परोपकारु I भक्तांकरितां बहु केला I I १०१ I I
किंवा सिद्धमुनि बलाहक I नामधारक शिष्य चातक I
मुख पसरोनि, बिंदू एक I मागतां, अपार वर्षला I I १०२ I I
तेणें भक्तां अभक्तां फुकाचा I सकळां लाभ झाला अमृताचा I
हृदयकोश खळजनांचा I पाषाणसमही पाझरे I I १०३ I I
श्रीगुरुरायाचे धरुं चरण I सिद्धमुनीतें करूं वंदन I
नामधारका करूं नमन I ऐसें करीं नारायणा I I १०४ I I
श्रीगुरुरूपी नारायणा I विश्वंभरा दीनोद्धारणा I
आपण आपली दावूनि खुणा I गुरुशिष्यरूपें क्रीडसी I I १०५ I I
I I इति श्रीगुरूचरित्रामृते, परमकथाकल्पतरौ,
श्रीनृसिंहसरस्वत्युपाख्याने सिद्ध-नामधारकसंवादे
एकपंचाशदध्यायसारे अवतरणिका नाम द्विपंचाशत्तमोSध्यायः I I
श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु I I श्रीगुरुदेवदत्त I I